Friday, 7 September 2018

राजस्थान के जौहर व साके


चित्तौड़गढ़ :- 

 पहला साका
सन 1313 में जब दिल्ली के सुल्तान अलाउद्द्दीन खिलजी ने रणथंभौर विजय के बाद चित्तोड़ पर आक्रमण किया, अलाउद्दीन की साम्राज्यवादी महत्वकांक्षा तथा राणा रतन सिंह की अनिद्य रानी पद्मिनी को पाने की लालसा हमले का कारण बनी !

दूसरा साका 
सन 1534-35 में हुआ जब गुजरात के सुल्तान बहादुर शाह ने एक विशाल सेना के साथ चित्तौड़ पर हमला कर दिया जिसका प्रतिरोध राजपूत योद्धाओं ने बाघ सिंह के नेतृत्व में किया, राजमाता हाडी (कर्णावती) और दुर्ग की सैकड़ों वीरांगनाओं ने जौहर का अनुष्ठान कर अपने प्राणों की आहुति दी !

तीसरा साका 
1568 मे जब मुगल बादशाह अकबर ने राणा उदय सिंह के शासनकाल में चित्तौड़गढ़ पर जोरदार आक्रमण किया, यह साका जयमल राठौर और पत्ता सिसोदिया के पराक्रम और बलिदान के लिए प्रसिद्ध है !

जैसलमेर :-

पहला साका 
उस समय जब दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने विशाल सेना के साथ आक्रमण कर दुर्ग को घेर लिया इसमें भाटी शासक रावल मूलराज, कुंवर रतन सिंह रतन सिंह अगणित योद्धाओं ने असीधारा तीर्थ में स्नान किया तथा ललनाओं ने जोहर का अनुष्ठान किया !

दूसरा साका 
फिरोजशाह तुगलक के शासन के प्रारंभिक वर्षों में हुआ, रावल दूदा, त्रिलोक श्री त्रिलोकसी व अन्य भाटी सरदारों ने युद्ध में शत्रु सेना से लड़ते हुए वीरगति पाई और दुर्गास्त वीरांगनाओं ने जौहर किया !

तीसरा साका 
यह साका अर्ध साका कहलाता है क्योंकि इसमें वीरों ने केसरिया तो किया लड़ते हुए वीरगति पाई लेकिन जौहर नहीं हुआ, अतः अर्ध साका ही माना जाता है, यह घटना 1550 इ. की है जब राव लूणकरण वहां का शासक था इस समय आमिर अली पराजित हुआ !

रणथंबोर दुर्ग :- 
रणथंबोर का प्रसिद्ध शाखा 1301 ईसवी में हुआ, जो वहां के पराक्रमी शासक राव हम्मीर देव चौहान ने अलाउद्दीन खिलजी के विद्रोही सेना बच्चों को अपने यहां आश्रय देकर शरणागत वत्सलता के आदर्श और अपनी आन की रक्षा करते हुए विश्वस्त योद्धाओं सहित वीरगति प्राप्त की तथा रानियों  दुर्ग की वीर नारियों ने हम्मीर की रानी रंगदेवी के नेतृत्व में जौहर का अनुष्ठान किया !

गागरोन दुर्ग :- 

पहला साका 
गागरोन का पहला साका सन 1423 मे हुआ वहां के अतुल पराक्रमी शासक अचलदास खींची के शासनकाल में मांडू के सुल्तान अलपम खान गोरी ने आक्रमण किया, परिणाम स्वरुप भीषण संग्राम हुआ जिसमें अचलदास ने अपने बंधु-बांधवों और योद्धाओं सहित शत्रु से जूझते हुए वीरगति प्राप्त की तथा उसकी रानियां व दुर्ग की अन्य लालनाओं ने अपने को जौहर की ज्वाला में होम दिया अचलदास खींची री वचनिका में इसका विस्तार से वर्णन हुआ है !

दूसरा साका 
गागरोन का दूसरा साका 1444 इ. में हुआ जब मांडू के सुल्तान महमूद खिलजी ने विशाल सेना के साथ इस दुर्ग पर आक्रमण किया तथा पाल्हणसी से खींची की रानी ने नेतृत्व में जौहर किया!

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